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Thursday, July 2, 2009

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" गीत - अस्थियों के जंगल में"

अस्थियों के जंगल में, भटकी हैं, संवेदना की तितलियां !
यंत्र - चालित से ह्रदय हैं, पानी से भरी धमनियां !!

भावना है व्यर्थ यहां, सब का अर्थ है, अर्थ यहां,
बस माया ही अर्धय यहां, सब दे के मिले दर्द यहां,
स्वार्थ की ये नगरी है, यहां मिलती,पैसों से ही खुशियां !
यंत्र - चालित से ह्रदय हैं, पानी से भरी धमनियां !!

पत्थर के बुत हैं सब, अपने ही मद में धुत हैं सब,
यूं है शोर चारों और, मन ही मन में चुप हैं सब,
ये उदास नगरी है, यहां तकती हैं,भाव-शून्य पुतलियां !
यंत्र - चालित से ह्रदय हैं, पानी से भरी धमनियां !!

2 Comments:

Blogger RAJNISH PARIHAR said...

nice one...

July 2, 2009 at 4:20 PM  
Blogger रंजना said...

Bahut bahut sundar bhavpoorn yatharthparak rachna anil ji....badhai aapko.

July 2, 2009 at 5:18 PM  

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