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Tuesday, October 20, 2009

www.blogvani.com चिट्ठाजगत
एक और दोगला !

मेरी आँखों के आँसुओं को
केवल नमकीन पानी समझना
और, अपने आँसुओं को
खून के आँसुओं की संज्ञा देना
तुम्हारे दोगले स्वभाव का
परिचायक ही तो है
वगरना
मेरे जिस आघात से
तुम्हे चोट पहुँची
मुझे भी तो वैसे ही
तुम्हारे आघात से
अधिक नहीं तो
कुछ तो दर्द हुआ ही होगा
यदि तुम यह समझ पाते
तो
न तुम्हे दर्द होता
न मुझे होता
न तुम रोते !
न मैं रोता !!
- डा0अनिल चड्डा

1 Comments:

Blogger अजित गुप्ता का कोना said...

यही जीवन है। अच्‍छी पंक्तियों के लिए बधाई।

October 20, 2009 at 12:26 PM  

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