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Wednesday, July 22, 2009

www.blogvani.com चिट्ठाजगत
"उपदेशक"
तुमने
कहा था एक दिन
यह जग छलावा है
हर मोड़, हर रिश्ता
भुलावा है
इसलिये मोह न कर
भौतिकता की
दीवानगी में न पड़
पर
तुमने जो मुझे समझाना चाहा
सिखाना चाहा
क्या कर के दिखाना चाहा
अब समझा
तुम्हे तो चाहिये था
एकछत्र राज्य
सारी धरती के
सुखों का साम्राज्य
इसीलिये तो
बन बैठे
बस एक उपदेशक
मन में धार
यही विचार
तुम पर, तुम्हारी चीज़ पर
न रहे किसी का अधिकार
और तुम
गिद्ध-सी आँख लगाए
सब कुछ
कर लो पार !