"मेरी कविता"
मेरी कविता
यौवनावस्था
प्राप्त होने से पहले ही
बुढ़ा चुकी है
आँख
खोलने से पहले ही
अंधा चुकी है
कपड़े ओढ़ कर भी
तो नंगी ही है
पेट भर कर भी तो
भूखी ही है
क्योंकि
यह उन बदनसीब
भूखे, नंगें
अंदर के धधकते लावे को
आँख-नाक से बहाते
जर्जर कंकालो के
साथ रहती है,
साथ खाती है,
साथ पीती है
कभी न रोती है
मज़े से
फुटपाथ पर
सोती है ! -
डा0 अनिल चड्डा
मेरी कविता
यौवनावस्था
प्राप्त होने से पहले ही
बुढ़ा चुकी है
आँख
खोलने से पहले ही
अंधा चुकी है
कपड़े ओढ़ कर भी
तो नंगी ही है
पेट भर कर भी तो
भूखी ही है
क्योंकि
यह उन बदनसीब
भूखे, नंगें
अंदर के धधकते लावे को
आँख-नाक से बहाते
जर्जर कंकालो के
साथ रहती है,
साथ खाती है,
साथ पीती है
कभी न रोती है
मज़े से
फुटपाथ पर
सोती है ! -
डा0 अनिल चड्डा