Text selection Lock by Hindi Blog Tips

Monday, July 27, 2009

www.blogvani.com चिट्ठाजगत
अकुलाहट

मैं जानता था

मेरी अकुलाहट
किसी दिन
ज़रूर रंग लायेगी
शब्दों में गुंथ कर
पन्नों पर उतर आयेगी
हर क्षण
हर पल
ह्रदय के द्वार पर
जो आहट सी होती थी
मेरे आसपास की वेदना को
चेतना में पिरोती थी
मेरी रचना तो
इसी समाज़ की धाती है
यह मेरे नहीं
समाज़ के गीत गाती है
इसमें त्रस्त अनुभूतियों का
सारांश है
यह सहनशीला धरती नहीं
आक्रोश की ज्वाला से
तपता आकाश है !
- डा0 अनिल चड्डा